Wednesday, April 24, 2024
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शुजाअत ज़ोरे बाज़ू ही नहीं बल्कि इताअत भी है

(4 मोहर्रम) कर्बला इंसानसाज़ी की दर्सगाह
वकार रिज़वी
आज ही का दिन वह दिन है जब यज़ीद की $फौजों ने दरिया के किनारे से इमाम हुसैन के ख़ैमों को हटाने को कहा, यह कहना था कि हुसैन का शेर अब्बास बिफर गया, यज़ीद का लश्कर कांप गया, हुसैन ने बहन से कहा कि हम कई बार अब्बास को रोक चुके हैं अब तुम्हारी बारी है, जनाबे ज़ैनब इमाम का इशारा समझ गयी उन्होंने फिज़्ज़ा की तरफ़ देखा मां की कनीज़ को समझने में देर न लगी, वह बाहर आयीं और अब्बास को बहन के याद करने की ख़बर सुनायी। बाबुल इल्म का फऱज़ंद को बहन की मंशा समझने में एक लम्हा भी न लगा, उन्होंने तलवार की नोंक से ज़मीन पर लकीर ख़ींची और यज़ीद की फ़ौज से कहा कि जब तक मैं वापस न आ जाऊं कोई इसके कऱीब भी न आये, दुश्मन फ़ौज तो पहले से ही हुसैन के बिफरे हुये शेर की ताब न ला सकी थी वह जहां थी वहीं ठहर गयी। अब्बास ख़ेमें में आये बहन ने उनकी तरफ़ हसरत भरी निगाहों से देखा अब्बास ने तलावर ज़ानू पर रखी और दो टुकड़े कर उसे बहन की क़दमों में डाल दिया, और इसी के साथ हजऱते अब्बास ने शुजाअत की मायने बदल दिये अभी तक अभी तक समझा जाता था कि शुजाअत जंग में ज्यादा से ज्यादा लोगों पर $गालिब आ जाने या ज्यादा से ज्यादा लोगों के सर $कलम कर देने का नाम है। लेकिन हज़रत अब्बास ने बताया कि अस्ल शुजाअत ज़ोरे बाज़ू नहीं बल्कि नफ़्स पर काबू का नाम है। जोश का होश पर ग़ालिब आना शुजाअत नहीं बल्कि इताअत के आगे अपनी ताक़त पर क़ाबू रखना अस्ल शुजाअत है, उन्होंने अपने इस अमल से बताया कि हम जिसकी इताअत करते हैं उनका मंशा अस्ल है उसके आगे अपना जोश और वलवला कोई मायने नहीं रखता। इताअत का मतलब ही यह है कि जिसकी इताअत की जाये उसके मंशे के मुताबिक़ ही अपना रददे अमल हो।
अगर यह दर्स कर्बला के मैदान से हुसैन के अज़ादारों तक पहुंच गया है तो उन सब पर लाजि़म है कि वह अपने मरजाह की इताअत में अपनी चाहत को क़ुरबान कर दें। सीस्तानी साहब ने फऱमाया कि अहले सुन्नत हमारे भाई नहीं बल्कि हमारी जान है। ऐसे ही ख़ामनई साहब ने फऱमाया कि क़ुरआन का हुक्म है कि तमाम मुस्लिम उम्मतें इत्तेहाद के साथ रहें, यह दुश्मन की साजिश है कि मुसलमानों को आपस में उलझाकर रखा जाये, एक फिऱक़ा दूसरे फिऱक़े को काफिऱ कहे, एक दूसरे पर लानत करे, यह वही चीज़ है जो दुश्मन चाहता है।
कर्बला का एक पैग़ाम यह भी है कि मुक़ालिफ़ जमाअतों को अपने हुस्ने एक़लाक़, जि़क्रे हुसैन, कर्बला के हक़ीक़ी पैग़ाम से मुताअसिर कर अपने कऱीब आने पर मजबूर करें नाकि आने वालों के लिये भी रास्ते दुश्वार करें। हम ऐसा भी कर सकते हैं कि मोहर्रम के 10 दिन विक्टोरिया स्ट्रीट पर जहां तक मुमकिन हो आने जाने वालों के लिये दुश्वारी का सबब न बनें क्योंकि यह किसी सिश्यासी जमाअत का मुज़ाहरा नहीं बल्कि हुसैन-ए-मज़लूम का मातम है इसलिये कुछ तो $फकऱ् होना ही चाहिये दूसरों के सड़क घेरने में और हुसैनी अज़ादार के सड़क इस्तेमाल करने में। याद रखें शर फैलाने वाले न आपके हैं और न हुसैन अ.स. के। ऐसे बनें कि मौला भी कहें यह हमारा शिया है।
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