‘राम’ और ‘हनुमान’

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अली संजर नियाजी
मुकर्रमी। हर चीज के दो पहलू होते हैं एक अच्छा दूसरा बुरा। दोनों पहलुओं में से दूसरा पहलू हर खास व आम पर हावी हो गया है। यानी काम कम ड्रामा ज्यादा, इसी की जद में आकर हनुमान की ज़ात व मजहब पर बयान बाजी शुरू हो गई। कोई दलित बता रहा है तो कोई मुसलमान, कोई जाट बता रहा है तो कोई खिलाड़ी और क्या-क्या गुल खिलेंगे कुछ कहा नहीं जा सकता। पुराने ज़माने में लोगों को अच्छा बनाने के लिए मूर्तियों के जरिए समझाया जाता था। हनुमान (अनुमान) का अर्थ है (अन्दाजा, सोच, फहम) राम का अर्थ है रौशनी और सीता का अर्थ है सच्चाई। यह तीनों उस जमाने के किरदार हैं जैसे कोई भी काम शुरू करने से पहले अन्दाजा करलें, सोच-समझ लें, दूसरा यह कि हर तरफ इल्म की रौशनी फैलाई जाये ताकि लोग वाकिफ हो सकें और तीसरा यह कि वादे का पक्का या सच्चाई पर खरा उतरे ताकि लोग ऐतबार करें। मगर यहां तो उल्टी गंगा बह रही है। इससे किसी का कुछ भला होने वाला नहीं है।
राम मन्दिर के बारे में हिन्दू भाईयों और साधू सन्तों को भी समझ लेना चाहिए कि राम मन्दिर बने तो किस राम का बने? निम्नलिखित शैर पर गौर फरमायेः
ऽ         एक राम दशरथ का बेटा,
ऽ         एक राम घट-घट में बैठा।
ऽ         एक राम का सक्ल पसारा,
ऽ         एक राम सब हों से प्यारा।।
(हिन्दी पत्रिका ‘सत्य कथा’, लाइब्रेरी, यूपी उर्दू एकेडमी, कैसरबाग, लखनऊ सन्1988-89)
पहले शैर के बारे में सभी हिन्दू भाई और मुसलमान भाई जानते हैं। दूसरे शैर में जो राम हैं वह हर इन्सान के अन्दर मौजूद है इसी लिये इन्सान को अशरफुल-मखलूकात कहा गया है। तीसरे शैर राम को हजरत आदम कहा गया है। जैसे लंका में पुल-ए-आदम को अंग्रेजी में ‘एडम ब्रिज’ और हिन्दी में ‘रामासेतु’ कहा गया है। इसी राम यानी हजरत आदम से औलादों का सिलसिला शुरू हुआ जो आज तक बदस्तूर कायम है। चाहे कोई हिन्दू हो या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई, यहूदी हो या पारसी हत्ताकि दुनिया में जितने भी कौमें है ंसभी औलाद-ए-आदम हैं। चैथा शैर राम हुजूर-ए-अकरम से मन्सूब है यानी सब से मुअज़्ज़ज़, अफजल और नूर से मुनव्वर। हुजूर के बाबत किसी मुमताज शायर की नआत है। ‘‘नूरे मुजस्सम नैयरे आजम सल्ललाहो अलैहे वसल्लम’’
मेरी मालूमात की हद तक ‘सत्यकथा’ के हजरत शायर की जो भी मन्शा रही हो लेकिन यह शैर यही बता रहा है।
हमारे मुअज़्ज़ज़ीन हिन्दू भाई अगर मन्दिर बनाना चाहते हैं तो किस राम का बनायेंगे? इस पर थोड़ा-सा गौर करने की जरूरत है।
कोई भी अदालत हो जब तक दोनों पक्ष मुत्तफिका तौर से बयान नही देंगे तो फैसला होना मुश्किल है। दोनो पक्षों को आपस में मिल बैठ कर समझ लेना चाहिए इस के बाद अदालत से सम्पर्क करना भविष्य के लिये शुभ-शगुन होगा। नहीं तो अभी 26 साल गुजरे हैं और मज़ीद 26 साल गुजरेगा तो 52 साल हो जायेगे इस दौरान अगर नफरत और बढ़ गई तो भविष्य के लिए शुभ-शगुन नहीं होंगे।
माज्रत: रोजनामा उर्दू अवधनामा 26 अगस्त 2018 के मुरासिला ‘रूयत-ए-हिलाल और चांद ग्रहण’ में गलती से ‘‘अगर हम पेश करें कि 2019 में पहला रोजा 6 मई और ईद 5 जून को होगी’’ को इस तरह पढ़ा जाये पहला रोज़ा 7 मई और ईद 5 जून को होगी। क्योंकि हमने 11 दिन के बजाए 12 दिन घटा दिये थे जिसमें मई 31 दिन का है इस लिये गलती से रोजा 6 मई हो गया इसे बराये महरबानी दुरूस्त फरमा लें। बकिया सब हस्ब-ए-साबिका रहेगा। अभी साल बदलने में एक हफता और रमजान उल मुबारक आने में 5 माह बाकी हैं। उपर्युक्त गलती के लिये सभी पाठकगण से माज्रत ख्वाह हैं।
 गोंडवी 486/32, बब्बूवाली गली, डालीगंज, लखनऊ-226020
म्.उंपसरू. ेंदरंतदपं्रप786/हउंपसण्बवउ
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